बिहार से फिर भेदभाव
57 हजार करोड़ के पैकेज की मांग पर केंद्र ने नहीं किया विचार
- केंदीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को यूपी के लिए 45 हजार करोड़ की विशेष सहायता मंजूर कर दी, लेकिन बिहार के लंबित 57 हजार करोड़ की सहायता के प्रस्ताव पर कोई विचार नहीं किया गया. राज्य सरकार बिहार को विशेष दर्जा दिये जाने की मांग करती रही है. इस पर भी केंद्र ने कोई विचार नहीं किया. -
पटना : केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में यूपी का मामला आने से बिहार को भी विशेष पैकेज मिलने की उम्मीद बंधी थी, लेकिन निराशा हाथ लगी. केंद्र इसके पहले सूखे के नाम पर बुंदेलखंड, पंजाब और बाढ़ से निबटने के लिए असम को विशेष पैकेज की घोषणा कर चुका है.
प्रस्ताव पर विचार नहीं
बिहार से अलग होकर झारखंड बनने के समय से ही बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिये जाने की मांग की जा रही है. बिहार पुनर्गठन अधिनियम में विशेष कमेटी के गठन की चर्चा की गयी है.
उसी समय राज्य सरकार ने एक लाख 75 हजार करोड़ के पैकेज की मांग की थी. 2005 में जब नयी सरकार बनी, तो सबसे पहले बिहार विधानमंडल से विशेष दर्जा दिये जाने का प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किया गया. इसे केंद्र को विचार के लिए भेजा गया. आज तक उस पर केंद्र ने विचार नहीं किया.
केंद्र सरकार ने यूपी के लिए कोई ठोस कारण बताये बिना 45 हजार करोड़ का विशेष पैकेज मंजूर कर दिया.
यूपी की आबादी भले ही बिहार से अधिक हो, लेकिन जनसंख्या घनत्व के मामले में बिहार उससे आगे है. सांसद वशिष्ठ नारायण सिंह ने आरोप लगाया है कि केंद्र ने राजनीतिक कारणों से ही यूपी को विशेष पैकेज दिया है.
हर शर्त पूरी करता है बिहार
बिहार विशेष राज्य का दर्जा और विशेष पैकेज की सभी शर्तें पूरी करता है. राज्य के 38 में 28 जिले बाढ़पीड़ित हैं. झारखंड के गठन के बाद बिहार का क्षेत्रफल 94160 वर्ग किमी है. इसमें 73 प्रतिशत से अधिक बाढ़पीड़ित है.
56 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा से नीचे है. प्रति किलोमीटर सड़क के मामले में बिहार असम, हिमाचल और अरुणाचल प्रदेश से भी पीछे है. बिहार में प्रति लाख की आबादी पर महज 4.25 किमी सड़क है. बिहार में 703 किमी अंतरराष्ट्रीय सीमा है. यह एक लैंडलॉक्ड प्रदेश है. उत्तर बिहार बाढ़ग्रस्त और दक्षिण बिहार सूखाग्रस्त इलाका है. प्रदेश में जनसंख्या घनत्व दर 1102 है. राज्य के 61 प्रतिशत गावों में ही बिजली पहुंची है.
- आरटीआइ से मिली जानकारी
राज्य के सवा करोड़ नागरिकों के हस्ताक्षरयुक्त ज्ञापन को अंतरमंत्रलयी समूह ने यह कह कर नकार दिया कि बिहार विशेष राज्य के दज्रे के लिए फिट नहीं है. केंद्र ने इस फैसले को भी छिपाये रखा.
सूचना के अधिकार के तहत जब इसकी जानकारी के लिए आवेदन डाला गया, तो केंद्र की यह मानमानी सामने आयी. 30 मार्च, 2012 को सुधा पिल्लई की अध्यक्षतावाली अंतरमंत्रलयी समूह ने अपनी रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंप दी. रिपोर्ट के 47 वें कॉलम में अंतरमंत्रलयी समूह ने माना है कि बिहार मानव सूचकांक के कई बिंदुओं पर देश के अन्य राज्यों की तुलना में सबसे नीचे है.
साक्षरता दर, कक्षा में छात्रों की उपस्थिति अनुपात, मातृ मृत्यु दर, जीवन दर और साक्षरता दर में भी बिहार दूसरे राज्यों से पीछे है. रिपोर्ट के 26 वें पन्ने में सड़क, बिजली खपत में भी प्रदेश को पीछे बताया गया है. जदयू के सवा करोड़ हस्ताक्षरयुक्त ज्ञापन सौंपने के बाद प्रधानमंत्री के निर्देश पर अंतरमंत्रलयी समूह का गठन हुआ था. समूह की चार बैठकें हुई.
अंतिम बैठक में बिहार के मुख्य सचिव समेत कुछ अधिकारियों को बुलाया गया. उन्होंने बिहार के पक्ष में पूरी बातें रखीं. इसके बाद 30 मार्च को रिपोर्ट जारी कर दिया गया, जिसमें बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिये जाने के प्रस्ताव को खारिज कर दिया गया.
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