ड़ी पी एस आर के पुरम ,नयी दिल्ली ,से आई आई टी में दाखिले का सुपर हाई वे
ड़ी पी एस आर के पुरम से सीधे आई आई टी में दाखिले का सुपर हाई वे .
आई आई टी प्रवेश परीक्षा में शामिल होने के लिए निम्नतम योग्यता + २ परीक्षा में 80 या 85 % किये जाने की चर्चा है . अगर कोई विद्यार्थी +२ की बोर्ड परीक्षा में निर्धारित 80 -85 % से कम अंक लाता है तो वह आई आई टी के परीक्षा में शामिल नहीं हो सकता है.
अगर देश भर के विभिन्न राज्यों की माध्यमिक परीक्षा बोर्डों की बात की जाय तो 80 -85 % से ऊपर अंक से +२ परीक्षा पास करने वाले छात्रों की संख्या बमुश्किल से कुछ हजार होगी. आज के हिंदुस्तान समाचार पत्र में झारखण्ड ,उत्तराखंड ,उत्तर प्रदेश और बिहार के सन्दर्भ में यह आंकडा (2009 की बोर्ड परीक्षा के आधार पर ) 35 -3700 पहुंचता है. मतलब यह की 35 करोड़ की आबादी वाले हिंदी पट्टी के ये चार राज्यों के कुल जमा चार हजार छात्र आई आई टी की प्रवेश परीक्षा में बैठ सकेंगें.हाँ कहने वाले जरूर यह कह सकते हैं की इन राज्यों के सी बी एस सी के स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों में इस प्रवेश परीक्ष में बैठने की योग्यता वाले छात्रों की संख्या राज्य माध्यमिक बोर्डों से पास होने वाले छात्रों की तुलना में अच्छी होगी .तर्क के लिए अगर मान भी लिया जाय तो भी इन चार राज्यों से परीक्षा में बैठने वाले छात्रों का आंकडा दस हजार से कतय्यी आगे नहीं जाएगा.
हिंदी भाषी इन चार पिछडे राज्यों से अब निगाह हटायें और दिल्ली के कुलीन प्रतिष्ठित विद्यालय डीपीएस आर के पुरम को देखें.यह भारत की राजधानी दिल्ली के रसूख वाले लोगों के वारिसों का स्कूल है. 2009 की सीबीऍसई की बोर्ड परीक्षा में तक़रीबन ८०० छात्र छात्राएं 80 % से ज्यादा अंकों से पास की .विज्ञानं के तक़रीबन छः सौ छात्र आई आई टी की प्रवेश परीक्षा में शामिल होने की पात्रता रखते हैं.
अब आप बताईये किस सामजिक आर्थिक पृष्ठभूमि वाले छात्र आई आई टी में शामिल हो सकते हैं.जब प्रवेश परीक्षा में शामिल होने में हिन् इतनी बंदिशें तो सरकारी पैसों पर चलने वाले इन उच्च शिक्षण संस्थायों में ,हिंदुस्तान के गाँव और कस्बों छोटे शहरों के सरकारी और म्युनिसिपल स्कूलों से पढ़ने वाले बच्चे , शिक्षा प्राप्त करने का सपना कैसे देख सकते हैं
जनाब यह तो सीधे सीधे संस्थागत तरीके से ग्रामीण और कस्बाई सरकारी स्कूलों के बच्चों के EXCLUSION की साजिश है.
इसे कहते हैं संस्थागत रूप से प्रतिभा की छंटाई और प्रतिभा का सृजन .मेधा सृजन और निर्माण की यह नयी रवायत है.किसने कहा की सब को समान अवसर मिलना चाहिए . कौन कहता है की मेधा का सृजन सामजिक प्रक्रिया है .
सनद रहे ,इक्कीसवीं सदी में हम मुक्कम्मल तौर पर भारत को मेधा -आधारित समाज और राष्ट्र बनाना चाहते
आई आई टी प्रवेश परीक्षा में शामिल होने के लिए निम्नतम योग्यता + २ परीक्षा में 80 या 85 % किये जाने की चर्चा है . अगर कोई विद्यार्थी +२ की बोर्ड परीक्षा में निर्धारित 80 -85 % से कम अंक लाता है तो वह आई आई टी के परीक्षा में शामिल नहीं हो सकता है.
अगर देश भर के विभिन्न राज्यों की माध्यमिक परीक्षा बोर्डों की बात की जाय तो 80 -85 % से ऊपर अंक से +२ परीक्षा पास करने वाले छात्रों की संख्या बमुश्किल से कुछ हजार होगी. आज के हिंदुस्तान समाचार पत्र में झारखण्ड ,उत्तराखंड ,उत्तर प्रदेश और बिहार के सन्दर्भ में यह आंकडा (2009 की बोर्ड परीक्षा के आधार पर ) 35 -3700 पहुंचता है. मतलब यह की 35 करोड़ की आबादी वाले हिंदी पट्टी के ये चार राज्यों के कुल जमा चार हजार छात्र आई आई टी की प्रवेश परीक्षा में बैठ सकेंगें.हाँ कहने वाले जरूर यह कह सकते हैं की इन राज्यों के सी बी एस सी के स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों में इस प्रवेश परीक्ष में बैठने की योग्यता वाले छात्रों की संख्या राज्य माध्यमिक बोर्डों से पास होने वाले छात्रों की तुलना में अच्छी होगी .तर्क के लिए अगर मान भी लिया जाय तो भी इन चार राज्यों से परीक्षा में बैठने वाले छात्रों का आंकडा दस हजार से कतय्यी आगे नहीं जाएगा.
हिंदी भाषी इन चार पिछडे राज्यों से अब निगाह हटायें और दिल्ली के कुलीन प्रतिष्ठित विद्यालय डीपीएस आर के पुरम को देखें.यह भारत की राजधानी दिल्ली के रसूख वाले लोगों के वारिसों का स्कूल है. 2009 की सीबीऍसई की बोर्ड परीक्षा में तक़रीबन ८०० छात्र छात्राएं 80 % से ज्यादा अंकों से पास की .विज्ञानं के तक़रीबन छः सौ छात्र आई आई टी की प्रवेश परीक्षा में शामिल होने की पात्रता रखते हैं.
अब आप बताईये किस सामजिक आर्थिक पृष्ठभूमि वाले छात्र आई आई टी में शामिल हो सकते हैं.जब प्रवेश परीक्षा में शामिल होने में हिन् इतनी बंदिशें तो सरकारी पैसों पर चलने वाले इन उच्च शिक्षण संस्थायों में ,हिंदुस्तान के गाँव और कस्बों छोटे शहरों के सरकारी और म्युनिसिपल स्कूलों से पढ़ने वाले बच्चे , शिक्षा प्राप्त करने का सपना कैसे देख सकते हैं
जनाब यह तो सीधे सीधे संस्थागत तरीके से ग्रामीण और कस्बाई सरकारी स्कूलों के बच्चों के EXCLUSION की साजिश है.
इसे कहते हैं संस्थागत रूप से प्रतिभा की छंटाई और प्रतिभा का सृजन .मेधा सृजन और निर्माण की यह नयी रवायत है.किसने कहा की सब को समान अवसर मिलना चाहिए . कौन कहता है की मेधा का सृजन सामजिक प्रक्रिया है .
सनद रहे ,इक्कीसवीं सदी में हम मुक्कम्मल तौर पर भारत को मेधा -आधारित समाज और राष्ट्र बनाना चाहते
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